रूपेंद्र

 

आज से लगभग २० -२२ साल पहले वो मस्ती भरा दिन ढलते ढलते ढल गया था हादसे में । बीरेंद्र की चीखों से परिवार की खुशियों का सर्वनाश हो गया था। बीरेंद्र चीख रहा था, रो रहा था ,अपने भाई रूपेंद्र के लिए ,उसका भाई उससे थोड़ी ही दूरी पर चित्त पड़ा था। उसे कुछ हो गया था पर क्या ये किसी को नही पता था।

रूपेंद्र चार बेटों और दो बहनों में सबसे छोटा भाई था उससे बड़ा बीरेंद्र। परिवार गाँव का था और पिता जमींदार के वंशज थे। उनके घर के बगल में ही उन्ही के खानदान का परिवार रहता था ,जिससे मानसिक वैमन्यस्ता रहती थी। रूपेंद्र १४ १५ साल का रहा होगा और उसका बड़ा भाई बीरेंद्र १६ -१७ साल का । रूपेंद्र का नाम उसके रूप के कारण ही पड़ा था ; बेहद खूबसूरत और मासूम लड़का ,अपने परिवार से प्यार करने वाला और आचरण और पढाई में भी अच्छा था। कहानी सिर्फ रूपेंद्र की है ..  

रूपेंद्र और बीरेंद्र और बाकि भाई बहनों का रिश्ता बहुत ही अच्छा था।  बीरेंद्र और रूपेंद्र की आपस में खूब छनती थी हमेशा एक साथ खेला करते थे  .. लेकिन उस दिन दोनों भाइयों में वो आखिरी खेल था .. गाँव के बाहर आम का बाग़ था ।बाग़ के पास ललाई बाबा के नाम से एक कुंआं था ,लोग कहते थे उस कुएं में उन बाबा की आत्मा रहती है । पास ही जामुन का पेड़ था जिस पर दोनों भाई चढ़ा करते थे । उस दिन भी दोनों भाई खेलने वहीं गए थे ।दो तीन घंटे से दोनों भाई जामुन की पेड़ की शाखों पर घर घर खेल रहे थे , झूठ मूठ की चाय और खाना बन रहा था और दोनों भाई एक एक करके एक दुसरे के घर रूपी शाखा  पर  बारी बारी मेहमान नवाज़ी करवा रहे थे ,पर अचानक से कुछ हुआ रूपेंद्र को , वो पेड़ की शाखा से ही बेहोश होकर गिर गया  और उसका शरीर नीला पड़ने लगा, बीरेंद्र डर गया रूपेंद्र की ऐसी हालत देख कर । वो चीखने लगा और दौड़ कर सभी लोगों को बुला लिया। सब डर गए रूपेंद्र की ऐसी हालत देख कर । सब दौड़ पड़े डाक्टर के यहाँ । पास के डाक्टर नें जवाब दे दिया फिर बड़े अस्पताल भागने की तैयारी हुई पर रूपेंद्र अपनी आखिरी सांसें गिन चुका था । बस आँखों में आंसू थे मरणासन्न हालत में भी, लोगों ने पूछने की कोशिश कि कैसे क्या हो गया लेकिन वो बच्चा बस जवाब में अपनी कातर नज़रों से आसुंओं को ढलका पाया था। उसका पूरा शरीर नीला था और थोड़ा सा झाग मुह से निकला था। उस प्यारे से बच्चे का ठंडा शरीर देखकर हर किसी का चित्त फट रहा था। बिना वजह अच्छे भले लड़के की हालत ऐसी कैसे हो सकती है कि कुछ सोचने से पहले ही वो मर जाए ? सांप ने भी नहीं काटा था उसे , गाँव के लोगों और रिश्तेदारों ने पूरा शक किसी के जहर देने पर गया। अपराध से ज्यादा पोस्ट मार्टम और पुलिस का गाँव आना गाँव की साख को दागदार करता था तो आखिर में बीरेंद्र से पूछा गया तो बीरेंद्र ने यह शंका ख़ारिज कर दी यह बोल कर कि सुबह से रूपेंद्र उसके साथ था। पूरा परिवार मातम में था । हीरे जैसे बच्चे को खोया था आखिर, भाई बहन सब सदमें में थे । पिता दुःख से निशब्द था तो माँ विक्षिप्त अवस्था को पा गई थी अपने सबसे छोटे लाड़ले के प्राण मुक्त शरीर को देख कर । रूपेंद्र का ठंडा पड़ा शरीर भाई बहनों के प्राणों को जला रहा था। इसकी किसी ने कोई उम्मीद नही की थी। खास कर बीरेंद्र सबसे ज्यादा सदमें में था ,उसके सामने ही उसका हँसता खेलता भाई मौत के आगोश में जो चला गया था…….

दुश्मन के घर अकाल मृत्यु जो हुई थी इसलिए उस परिवार के विरोधियों ने भी अप्रत्यछ ख़ुशी जाहिर करने में कोई कमी नही की । ख़ुश होने का और अपनी भावनाओं को दिखाने का सुनहरा मौका कैसे छोड़ सकते थे । विरोधियों की ख़ुशी देख बीरेंद्र का खून खौल जाता था। इसीलिए बीरेंद्र को लेकर सब परेशान थे वो विरोधियों से बदला लेने की कसमें खाया करता था। सब को यही डर था कि कहीं कोई गलत कदम न उठा ले वह आवेश में आकर।

 अब गाँव में अटकलों का बाज़ार गरम था। दुःखद था लेकिन ख़ाली बैठे लोगों के प्रपंच के लिए इससे बढ़िया मुद्दा नहीं हो सकता था। कोई कहता ललाई बाबा ने ले ली जान रूपेंद्र की , तो कोई कहता विरोधियोँ ने जादू टोना करके मारा है। यहाँ तक कुछ लोग ने यह तक पता करके बता दिया कि विरोधियों ने किस तांत्रिक के पास जाकर रूपेंद्र को मरवाया है। कोई कहता विरोधियों ने ही चुपके से जहर खिला दिया होगा या किसी अन्य रिश्तेदार की मदद से मरवा दिया रूपेंद्र को। कुल मिला कर हर संभव संभावनाओं का आकलन हो रहा था।  आखिर हर तजुर्बेकार इंसान को पता होता है कि जलन के आगे हर जलने वाला आदमी मजबूर है ..

समय बीतता चला गया अब तो रूपेंद्र बस यादों में बसा था वो भी वो यादें जो लगभग धूमिल हो चुकी थी सबकी ज़हन से ।बीरेंद्र भी थोडा सामान्य हो चुका था।बीरेंद्र अब खुल कर फैसले लेता है ,समाज , मानवीय अधिकारों और नैतिकता पर । वो दूसरों के लिए भी फैसले लेता है क्योंकि सब जानते थे उसने अपने भाई की मौत का दुःख सहा है तो वह किसी के साथ गलत नही करेगा । गाँव और सामाजिक सहानुभूति भी उसके साथ थी अब ,सब उसे पूरी तवज्जो देते थे , अब सब उसी का लाड़ करते थे । अब कोई तुलना नही थी उसके रूप और रूपेंद्र के रूप से …

 वैसे अगर दुश्मनों की मौजूदगी हो ज़िन्दगी में तो दोस्तों और अपनों  के लिए हज़ार रास्ते खुले रहते है विश्वासघात करने के लिए … हम अपने दुश्मनों से नफ़रत करने में इतने व्यस्त रहते है कि कोई अपना कातिल बन हमारे विश्वास का क़त्ल कर देता है ,और किसी को पता भी नही चलताऐसा ही कुछ रूपेंद्र के साथ हुआ था उस दिन , उसे भी किसी की जलन ने मारा था। जलन ही थी वह जिसमें जल कर बीरेंद्र ने कीटनाशक की गोली मजाक मज़ाक में रूपेंद्र को खिला दी थी । उसने कुछ दिन पहले ही किसी से सुना था की यह कीटनाशक  अगर कोई इंसान खा ले तो उसका जिंदा बचना असंभव है। उस दिन बीरेंद्र ने अपनी हीन भावना का हमेशा के लिए खात्मा कर दिया था । अब रूपेंद्र का अक्स बीरेंद्र के महत्त्व को सबके सामने दबाएगा नही। अब कोई तुलना नही करेगा छोटे भाई की बड़े भाई से, अब बीरेंद्र के गेंहुयें रंग को रूपेंद्र के गोरे रंग के सामने कोई सांवला नही बोलेगा ..  

 और रिश्तों का खूबसूरत रूप न मरे इसलिए उस दिन मासूम से रूपेंद्र ने मौत के आगोश में होकर भी सबके सवालों के जवाब में आँखों से दुःख और अविश्वसनीयता के आंसू ढलका दिए थे ….

आज दोपहर बीरेंद्र गाँव के किसी घर में बैठ कर नैतिकता को परिभाषित कर रहा है और गाँव के किनारे ललाई बाबा की आत्मा बैठ के सोच रही है कि काश … काश कि उड़ती चिड़िया के पर गिनने वाले तजुर्बेकार आँखों से ढलका पानी भी पढ़ लेते …..

 

पूजा श्री गौड़

Image – courtesy Google

 

 

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