विक्षिप्त विवाह

समाज ने अपना खुद ही मज़ाक बना दिया है विक्षिप्त विवाहों का दौर चला कर , रिश्तों और धार्मिक रीति रिवाजों की आत्मा का समाज स्वयं दमन कर रहा है। आज फिर समाज के अहं की संतुष्टी के लिए मानवता का तर्पण कर दिया गया। महज़ समाज की सन्तुष्टि के लिए रिश्तों की भावनाओं और…

न्याय

कितनी नारियों ने लुटी हुई अस्मत के साथ मृत्यु को अपना लिया  .. कितने किसान अपनी ही जमीन के हक़ की लड़ाई लड़ लड़ के इस दुनिया से रुखसत हो गए . कितने ही लोग अपराधों से पीड़ित अपनी ही नज़र में गिर गए ? कितने बेगुनाहों ने जेल की कोठरियों में सलाखें गिन गिन…

तपन

 एक बज गया होगा शायद .. लगभग दो घंटें से अपनी नींद से मिन्नतें जो कर रही थी पास आने की । जान गई थी वो कि उसके बगैर नहीं रह सकती शायद इसीलिए गुरुर हो चला था । और रात के एक बजे तक मैंने भी हार मान ली थी । अरसे से चल…

रूपेंद्र

  आज से लगभग २० -२२ साल पहले वो मस्ती भरा दिन ढलते ढलते ढल गया था हादसे में । बीरेंद्र की चीखों से परिवार की खुशियों का सर्वनाश हो गया था। बीरेंद्र चीख रहा था, रो रहा था ,अपने भाई रूपेंद्र के लिए ,उसका भाई उससे थोड़ी ही दूरी पर चित्त पड़ा था। उसे…

राधा की मौसी …

राधा नाम तो काल्पनिक ही है लेकिन उसकी मौसी हकीकत की लिखी एक कहानी का किरदार है । मुझे बस इतना मालूम था कि उनके पति का स्वर्गवास विवाह के कुछ दिन बाद हो गया था , संतान भी नहीं हो पाई थी जो उनमे ख़ुशी ढूंढ लेती । वो अपनी बहन की बेटियां के…

शम्भुनाथ

        साढ़े बारह  साल की मासूम सी बच्ची संध्या अपने कमरे में खटिया के एक कोने पर सहम कर बैठी रो रही थीं , ख़ौफ़ में उसके प्राण उसकी साँसों के साथ अंदर बाहर हो रहे थे । वो कमरा उस मासूम की सिसकियों और खौफ से भरा पड़ा था , कोमल…

मोबाइल चाहिए……

किन्ही वजहों से देर से ऑंखें खुली और सुबह हो चुकी थी ; शर्मिंदगी से बचने का मौका भी अँधेरा अपने साथ लेकर चला गया था। कम्भख्त अँधेरा ! थोड़ी देर रुक नहीं सकता था ?  दिल में अफसोफ भी खूब हुआ सुबह जल्दी न उठ पाने का।’ खैर कोई बात नहीं ‘ और ‘…

इंसान कब मरेंगें ……?

आप कोई भी घटना उठा लीजिये , हिटलर से लेकर हिंदुस्तान का बटवारा या रायबरेली का हाल में हुआ नर संहार या कुछ साल पहले हुई दादरी घटना या उससे पहले हुए वीभत्स्य गुजरात दंगे। इन सभी घटनाओं में एक चीज़ जरूर थी ; शोर खूब हुआ , राजनीती खूब हुई , शासन से लेकर…

मनोस्थितिः

समाज उन्हें बेचारा कहता है। उन्हें हमदर्दी , सहानुभूति का राशन भी बांटा जाता है वो भी मुफ़्त में। लेकिन उन्हें फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि वो उम्मीद नहीं करते। कहते है न  ‘ उम्मीद पर दुनियाँ कायम है ‘ लेकिन उन्हें जीना होता है हर उम्मीद का स्वयं दमन करके। यह उनके लिए आवश्यक धार्मिक…

रत्ना दाई

    नाम काल्पनिक है पर सुना है उनकें बारें में । रतन मंजनी बुआ की तरह वो भी बाल विधवा थी , तो ज़ाहिर है  समाज के लिए लगभग कूड़ा करकट के बराबर थीं , ना किसी से कुछ लेना ना कुछ देना। अपनी ज़िन्दगी घसीट रही थीं ससुराल में, छोटी उम्र में शादी हुई थी तो उन्हें पता…